हज पर बुला, मौला, काबा दिखा, मौला! Naat lyric | New Hajj Kalam 2021 - Haj Par Bula Maula - Hafiz Tahir Qadri






CREDITS:

Track : Hajj Par Bula Maula
Compostition : Hafiz Tahir Qadri
Poetry : Tafseer Raza Amjadi
Naat Khuwan : Hafiz Tahir Qadri & Hafiz Ahsan Qadri
Audio : RWDS Digital Studio
Director : Syed Muhammad Bilal Sani
Label : TQ Productions

गिलाफ़-ए-खाना-ए-काबा था मेरे हाथों में
ख़ुदा से अर्ज-ओ-गुज़ारिश की इनतीहाओं में था 

तवाफ़ करता था परवाना वार का 'बे का
जहान-ए-अर्ज-ओ-समाँ जैसे मेरे पाँव में था


हतीम में मेरे सज्दों की कैफियत थी अजब
जबीं जमीन पे थी, जहन कहकशाओं में था


दर-ए-करम पे सदा दे रहा था अश्कों से
जो मुल्तज़म पे खड़े थे में उन गदाओं में था


मुझे यक़ीन है, मैं फिर बुलाया जाऊँगा
कि ये सवाल भी शामिल मेरी दुआओं में था


अब रास्ते खुलें, पहुॅचूँ में, या ख़ुदा 

हज पर बुला, मौला, काबा दिखा, मौला!
हज पर बुला, मौला, काबा दिखा, मौला


या ख़ुदा बहर-ए-मुहम्मद तू मुझे हज पर बुला
काश! मैं भी देख लूँ आ कर हसीं काबा तेरा 


हज पर बुला मौला काबा दिखा, मौला! 
हज पर बुला, मौला, काबा दिखा, मौला


मौला मौला मौला मौला
मौला मौला मौला मौला ।


काश आ जाए बुलावा उस मुबारक शहर से
है जहाँ पर तुर्बत-ए-खैरुल बशर जल्वानुमा 


हज पर बुला, मौला! काबा दिखा, मौला
हज पर बुला मौला काबा दिखा, मौला


अब रास्ते खुले, पहुँचू में, या ख़ुदा


मौला मौला मौला मौला! 
मौला मौला मौला मौला


या ख़ुदा जब देख लूँगा मैं तेरा प्यारा हरम 
जाऊँगा फिर हाजियों के साथ शहर-ए-मुस्तफ़ा


हज पर बुला, मौला, काबा दिखा, मौला
हज पर बुला, मोला, काबा दिखा, मौला


अब रास्ते खुले पहुॅचूँ मैं, या ख़ुदा


इलाही! फिर दिखा दे वो प्यारा प्यारा काबा


फिर दिखा दे हरम, तेरे बंदे हैं हम
हम पे कर दे करम, तेरे बंदे हैं हम


हम गुनाहगार है, हम सियाह-कार हैं 
हो करम करम करम, तेरे बंदे हैं हम


सामने काबा तेरा हो, दस्त बस्ता में रहूँ 
ये करम कर दे, खुदा या सदक़ा-ए-खैरुल वरा

हज पर बुला, मौला, काथा दिखा, मौला
हज पर बुला, मौला, काबा दिखा, मौला।


अब रास्ते खुलें, पहुँचूँ मैं, या ख़ुदा


मौला मौला मौला मौला
मौला मौला मौला मौला


संग-ए-अस्वद का मैं बोसा. या ख़ुदा लेता रहूँ
अज़ प-एनौसुल वरा मुझ को शरफ ये कर 'अता


आब-ए-ज़मज़म भी वहाँ पर खूब में पीता रहूँ
हो करम मुझ पर खुदा बहर-ए-जनाब-ए-मुस्तफ़ा


हज पर बुला, मौला, काबा दिखा, मौला 
हज़ पर बुला मौला काबा दिखा, मौला

अब रास्ते खुले, पहुॅचूँ मैं, या ख़ुदा


मौला मौला मौला मौला!
मौला मौला मौला मौला!


क्यूँ न जाए मक्का से तफ़्सीर दरबार-ए-नबी
जब कि उन के दर पे बटता है खजाना नूर का 

हज पर बुला, मोला, काबा  दिखा, मौला
हज पर बुला, मौला, काबा दिखा, मौला


अब रास्ते खुलें, पहुँचूँ मैं, या ख़ुदा 

मौला मौला मौला मौला
मौला मौला मौला मौला

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