TITLE - TAIBA KE JANE WALE ARTIST - ALHAJJ MUHAMMAD OWAIS RAZA QADRI ALBUM - MAH-E-RAMZAN AAYA LABEL - HI-TECH MUSIC LTD
मेरा भी क़िस्सा-ए-ग़म कहना शह-ए- अरब से
कहना कि, शाह-ए-आली इक रंज-ओ-ग़म का मारा
दोनों जहाँ में इस का हैं आप ही सहारा
और काँपते लबों से फ़रियाद कर रहा है
बार-ए-गुनाह अपना है दोश पर उठाए
कोई नहीं है ऐसा जो पूछने को आए
भटका हुआ मुसाफ़िर मंज़िल को ढूँडता है।
तारीकियों में माह-ए-कामिल को ढूँडता है
ये सब मेरी हक़ीक़त सरकार को सुनाना
कहना मेरे नबी से महरूम हूँ ख़ुशी से
सर पर इक अब्र-ए-ग़म है, अश्कों से आँख नम है
पामाल-ए-ज़िंदगी हूँ, सरकार! उम्मती हूँ
उम्मत के रहनुमा हो, कुछ 'अर्ज़-ए-हाल सुन लो
फ़रियाद कर रहा हूँ, मैं दिल-फ़िगार कब से
मेरा भी किस्सा-ए-ग़म कहना शह-ए- अरब से
तयबा के जाने वाले जा कर बड़े अदब से
मेरा भी क़िस्सा-ए-नाम कहना शह-ए- अरब से
कहना कि खा रहा हूँ मैं ठोकरें जहाँ में
महसूस कर रहा हूँ, दुनिया है एक धोका
किस को मैं अपना जानूँ, किस का मैं लूँ सहारा
मुझ को तो, मेरे आक़ा! है आप का सहारा
दोनों जहाँ में तुम ही मेरा भरम रखोगे
तुम दाद-ख़्वाह-ए-आलम, मैं इक नसीब-ए बरहम
तुम बे-कसों के वाली, मैं बे-नवा सवाली
हूँ शर्मसार अपने आमाल के सबब से
मेरा भीक़िस्सा-ए-गम कहना शह-ए-अरब से
तयबा के जाने वाले जा कर बड़े अदब से
मेरा भी क़िस्सा-ए-गम कहना शह-ए-अरब से
ए आज़ीम-ए-मदीना जा कर नबी से कहना
सोज़-ए-ग़म-ए-अलम से अब जल रहा है सीना
कहना के दिल में लाखों अरमाँ भरे हुए हैं
कहना के हसरतों के नश्तर चुभे हुए हैं।
है आरज़ू ये दिल की, मैं भी मदीने जाऊँ
सुल्तान-ए-दो जहाँ को सब दाग़-ए-दिल दिखाऊँ
खाहूँ हज़ार चक्कर तयबा की हर गली के
यूँही गुज़ार दूँ मैं अय्याम ज़िंदगी के
महबूब से लिपट कर रोता रहूँ बराबर
आलम के दिल में है ये हसरत न जाने कब से
मेरा भी किस्सा ए गम कहना शह-ए-'अरब से
तयबा के जाने वाले जा कर बड़े अदब से
मेरा भी क़िस्सा-ए-गम कहना शह-ए- अरब से
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