अमल का हो जज़्बा 'अता, या इलाही - Hindi Naat Lyrics

अमल का हो जज़्बा 'अता, या इलाही - Hindi Naat Lyrics

अमल का हो जज़्बा 'अता, या इलाही !
गुनाहों से मुझ को बचा, या इलाही !

मैं पाँचों नमाज़ें पढ़ूँ बा-जमा'अत
हो तौफ़ीक़ ऐसी 'अता, या इलाही !

मैं पढ़ता रहूँ सुन्नतें, वक़्त ही पर
हों सारे नवाफ़िल अदा, या इलाही !

दे शौक़-ए-तिलावत, दे ज़ौक़-ए-'इबादत
रहूँ बा-वुज़ू मैं सदा, या इलाही !

हमेशा निगाहों को अपनी झुका कर
करूँ ख़ाशि'आना दु'आ, या इलाही !

न नेकी की दा'वत में सुस्ती हो मुझ से
बना शाइक़-ए-क़ाफ़िला, या इलाही !

स'आदत मिले दर्स-ए-फ़ैज़ान-ए-सुन्नत
की रोज़ाना दो मर्तबा, या इलाही !

मैं मिट्टी के सादा से बर्तन में खाऊँ
चटाई का हो बिस्तरा, या इलाही !

सदा-ए-मदीना दूँ रोज़ाना, सदक़ा
अबू-बक्र-ओ-फ़ारूक़ का, या इलाही !

हमेशा करूँ, काश ! पर्दे में पर्दा
तू पैकर हया का बना, या इलाही !

मैं नीची निगाहें रखूँ, काश ! अक्सर
'अता कर दे शर्म-ओ-हया, या इलाही !

हर इक मदनी इन'आम, ए काश ! पाऊँ
करम कर प-ए-मुस्तफ़ा, या इलाही !

लिबास अपना सुन्नत से आरास्ता हो
'इमामा हो सर पर सजा, या इलाही !

सभी रुख़ पे इक मुश्त दाढ़ी सजाएँ
बनें 'आशिक़-ए-मुस्तफ़ा, या इलाही !

है 'आलिम की ख़िदमत यक़ीनन स'आदत
हो तौफ़ीक़ इस की 'अता, या इलाही !

हो अख़लाक़ अच्छा, हो किरदार सुथरा
मुझे मुत्तक़ी तू बना, या इलाही !

ग़ुस्सीले मिज़ाज और तमस्ख़ुर की ख़स्लत
से 'अत्तार को तू बचा, या इलाही !

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