फ़ुर्क़त-ए-तयबा की वहशत दिल से जाए ख़ैर से
मैं मदीने को चलूँ वो दिन फिर आए ख़ैर से
दिल में हसरत कोई बाक़ी रह न जाए ख़ैर से
राह-ए-तयबा में मुझे यूँ मौत आए ख़ैर से
मेरे दिन फिर जाएँ, या रब ! शब वो आए ख़ैर से
दिल में जब माह-ए-मदीना घर बनाए ख़ैर से
रात मेरी दिन बने उन की लिक़ा-ए-ख़ैर से
क़ब्र में जब उन की तल'अत जगमगाए ख़ैर से
हैं ग़नी के दर पे हम बिस्तर जमाए ख़ैर से
ख़ैर के तालिब कहाँ जाएँगे जाए ख़ैर से
मर के भी दिल से न जाए उल्फ़त-ए-बाग़-ए-नबी
ख़ुल्द में भी बाग़-ए-जानाँ याद आए ख़ैर से
इस तरफ़ भी दो क़दम जल्वे ख़िराम-ए-नाज़ के
रह-गुज़र में हम भी हैं आँखें बिछाए ख़ैर से
इंतिज़ार उन से कहे है ब-ज़बान-ए-चश्म-ए-नम
कब मदीने मैं चलूँ, कब तू बुलाए ख़ैर से
ज़िंदाबाद, ए आरज़ू-ए-बाग़-ए-तयबा ! ज़िंदाबाद
तेरे दम से हैं ज़माने के सताए ख़ैर से
नज्दियों की चीरा-दस्ती, या इलाही ! ता-ब-के
ये बला-ए-नज्दिया तयबा से जाए ख़ैर से
गोश-बर-आवाज़ हों क़ुदसी भी उस के गीत पर
बाग़-ए-तयबा में जब अख़्तर गुनगुनाए ख़ैर से
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