ख़ाक-ए-मदीना होती, मैं ख़ाकसार होता हिंदी लिरिक्स | Khaak-e-Madina Hoti, Main Khaaksaar Hota Lyrics

ख़ाक-ए-मदीना होती, मैं ख़ाकसार होता
होती रह-ए-मदीना मेरा ग़ुबार होता

आक़ा अगर करम से तयबा मुझे बुलाते
रौज़े पर सदक़े होता, उन पर निसार होता

वो बेकसों के आक़ा, बेकस को गर बुलाते
क्यूँ सब की ठोकरों पर पड़ कर वो ख़्वार होता

तयबा में गर मुयस्सर दो-गज़ ज़मीन होती
उन के क़रीब बसता, दिल को क़रार होता

मर मिट के ख़ूब लगती मिट्टी मेरी ठिकाने
गर उन की रह-गुज़र पर मेरा मज़ार होता

ये आरज़ू है दिल की होता वो सब्ज़-गुम्बद
और मैं ग़ुबार बन कर उस पर निसार होता

बे-चैन दिल को अब तक समझा बुझा के रखा
मगर अब तो इस से, आक़ा ! नहीं इंतिज़ार होता

सालिक ! हुए हम उन के, वो भी हुए हमारे
दिल-ए-मुज़्तरिब को लेकिन नहीं ए'तिबार होता 


Post a Comment

0 Comments