ए दुश्मन-ए-दीं ! तूने किस क़ौम को ललकारा
ले हम भी हैं सफ़-आरा, ले हम भी हैं सफ़-आरा
ले हम भी हैं सफ़-आरा, ले हम भी हैं सफ़-आरा
आ देख ये बाज़ू, बाज़ू हैं कि तलवारें
सीने हैं जवानों के या आहनी दीवारें
मिल जाती हैं क़दमों से किस तरह से दस्तारें
हम तुझ को दिखा देंगे सौ बार ये नज़्ज़ारा
ए दुश्मन-ए-दीं ! तूने किस क़ौम को ललकारा
ले हम भी हैं सफ़-आरा, ले हम भी हैं सफ़-आरा
जिस राह से आएगा उस राह पे मारेंगे
मुड़ कर भी न देखेगा, यूँ नशा उतारेंगे
हम मौत की वादी से यूँ तुझ को गुज़ारेंगे
इस क़ौम से लड़ने की हिम्मत न हो दोबारा
ए दुश्मन-ए-दीं ! तूने किस क़ौम को ललकारा
ले हम भी हैं सफ़-आरा, ले हम भी हैं सफ़-आरा
इस क़ौम का हर बच्चा अल्लाह का सिपाही है
इस ख़ाक का हर ज़र्रा तक़दीर-ए-इलाही है
इस ख़ित्ते का हर गोशा इक ज़िंदा गवाही है
ईमाँ का है गहवारा, ईमाँ का है गहवारा
ए दुश्मन-ए-दीं ! तूने किस क़ौम को ललकारा
ले हम भी हैं सफ़-आरा, ले हम भी हैं सफ़-आरा
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