उन का मँगता हूँ, जो मँगता नहीं होने देते
उन का मँगता हूँ, जो मँगता नहीं होने देते
मेरे हर 'ऐब की करते हैं वो पर्दा-पोशी
मेरे जुर्मों का तमाशा नहीं होने देते
उन का मँगता हूँ, जो मँगता नहीं होने देते
अपने मँगतों की वो फ़ेहरिस्त में रखते हैं सदा
उन का मँगता हूँ, जो मँगता नहीं होने देते
अपने मँगतों की वो फ़ेहरिस्त में रखते हैं सदा
मुझ को मोहताज किसी का नहीं होने देते
उन का मँगता हूँ, जो मँगता नहीं होने देते
है ये ईमान कि आएँगे लहद में मेरी
उन का मँगता हूँ, जो मँगता नहीं होने देते
है ये ईमान कि आएँगे लहद में मेरी
अपने मँगतों को वो तन्हा नहीं होने देते
उन का मँगता हूँ, जो मँगता नहीं होने देते
ना'त पढ़ता हूँ तो आती है महक तयबा की
उन का मँगता हूँ, जो मँगता नहीं होने देते
ना'त पढ़ता हूँ तो आती है महक तयबा की
मेरे लहजे को वो मैला नहीं होने देते
उन का मँगता हूँ, जो मँगता नहीं होने देते
आप की याद से रहती है नमी आँखों में
मेरे दरियाओं को सहरा नहीं होने देते
उन का मँगता हूँ, जो मँगता नहीं होने देते
हुक्म करते हैं तो मिलते हैं ये मक्ते, शाकिर
उन का मँगता हूँ, जो मँगता नहीं होने देते
आप की याद से रहती है नमी आँखों में
मेरे दरियाओं को सहरा नहीं होने देते
उन का मँगता हूँ, जो मँगता नहीं होने देते
हुक्म करते हैं तो मिलते हैं ये मक्ते, शाकिर
आप न चाहें तो मतला' नहीं होने देते
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