इक न इक दिन ये मद्दाह-ए-ख़ैरुल-बशर | ek na ek din ye maddah khairul bashar lyrics hindi

 



इक न इक दिन ये मद्दाह-ए-ख़ैरुल-बशर
नाम अपना ज़माने में कर जाएगा
आसमाँ पर उसे ग़ुस्ल देंगे मलक
जो नबी की मोहब्बत में मर जाएगा

वो रसूलों में, नबियों में मुमताज़ हैं
उन को बख़्शे ख़ुदा ने ये ए'जाज़ हैं
चल दयार-ए-मदीना में तू सर के बल
तेरा बिगड़ा मुक़द्दर सँवर जाएगा

कितना बरतर-ओ-बाला है पा-ए-नबी
चूमते हैं अदब से जो रूहुल-अमीं
जिन के ना'लैन को चूमे 'अर्श-ए-बरीं
उन का तलवा कोई क्या समझ पाएगा

दस्त-ए-क़ुदरत से जिन की जुदा रूह हुई
सय्यिदा फ़ातिमा की है 'अज़मत बड़ी
जिन को देखा नहीं है फ़रिश्तों ने भी
उन का पर्दा कोई क्या समझ पाएगा

इक नवासे की तिश्ना-लबी है अजब
या'नी शब्बीर की बंदगी है अजब
जो झुके तो क़यामत तलक न उठे
ऐसा सज्दा कोई क्या समझ पाएगा

देख कर नूर, राजा ये कहने लगा
मैं ने ख़्वाजा को पानी किया बंद था
क्या पता था कि सागर समा जाएगा
उन का कासा कोई क्या समझ पाएगा

अहल-ए-सुन्नत के 'उलमा का है फ़ैसला
इस सदी के मुजद्दिद हैं अहमद रज़ा
छेड़ कर देखो इन का ज़रा तज़्किरा
चेहरा-ए-नज्दिया ख़ुद उतर जाएगा

सब के मुर्शिद, मेरे तालिब-ओ-राहबर
हैं इमाम अहल-ए-सुन्नत के लख़त-ए-जिगर
देखना होगा इक दिन ज़माना उधर
मेरा ताजु-श्शरि'आ जिधर जाएगा

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