कौन
शहरे मक्का में सुबह सुबह आया है
जिसके नूर से आलम सारा जगमगाया है
ग़ैब से निदा आई आमिना मुबारक हो
तूने रहमते हक़ से नूरे हक़ का पाया है
अक्ल सबकी हैरां है देखकर शहे दीं को
ये बशर तो हैं लेकिन क्यों न इनका साया है
इन्नमा अना बशरुम मिसलुकुम के परदे में
हक़ ने अपने जलवों का आयना सजाया है
थी निदा शबे असरा उदनु मिन्नी ऐ महबूब
बे धड़क चले आओ हमने ही बुलाया है
दामने नबी आशिक़ अब न हम से छूटेगा
हमने उनसे जो मांगा वह खुदा से पाया है।
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