अता-ए-मुस्तफ़ा ! मेरे ख़्वाजा पिया !
हसन, हुसैन से है आप को निस्बत
नबी की आल हो, 'अली के लाल हो
बयाँ हो किस ज़बाँ से आप की अज़मत
मुस्तफ़ा ने तुम्हें हिन्द भेजा, तुम मुरादे नबी हो
हिन्द जिस से मुनव्वर हुआ है, आप वो रौशनी हो
रिज़ा-ए-मुस्तफ़ा ! हबीब-ए-किब्रिया !
ज़मीं क्या, है फ़लक पर आप की शोहरत
'अता-ए-मुस्तफ़ा ! मेरे ख़्वाजा पिया !
हसन, हुसैन से है आप को निस्बत
नबी की आल हो, 'अली के लाल हो
बयाँ हो किस ज़बाँ से आप की अज़मत
एक मुद्दत से दिल में है अरमाँ, मैं भी अजमेर जाऊँ
थाम कर तुमरे रौज़े की जाली, हाल दिल का सुनाऊँ
दिल-ए-बेताब की, सदा सुन लो, सख़ी !
दिखा दीजे मुझे भी वो हसीं तुर्बत
'अता-ए-मुस्तफ़ा ! मेरे ख़्वाजा पिया !
हसन, हुसैन से है आप को निस्बत
नबी की आल हो, 'अली के लाल हो
बयाँ हो किस ज़बाँ से आप की अज़मत
एक कासे में दरिया डुबोया, डूबतों को तिराया
जोगी जयपाल को तुम ने, ख़्वाजा ! है मुसलमाँ बनाया
ख़ुदा की शान हो, नबी की जान हो
ज़माना जानता है आप की रिफ़'अत
'अता-ए-मुस्तफ़ा ! मेरे ख़्वाजा पिया !
हसन, हुसैन से है आप को निस्बत
नबी की आल हो, 'अली के लाल हो
बयाँ हो किस ज़बाँ से आप की अज़मत
आप को अपना सरदार माना हिन्द के औलिया ने
मेरे साबिर ने, वारिस पिया ने और अहमद रज़ा ने
तुम्ही हिन्दल-वली, न तुम सा है कोई
लब-ए-सरकार पर है आप की मिदहत
'अता-ए-मुस्तफ़ा ! मेरे ख़्वाजा पिया !
हसन, हुसैन से है आप को निस्बत
नबी की आल हो, 'अली के लाल हो
बयाँ हो किस ज़बाँ से आप की अज़मत
तुम ने ता'लीम तौहीद की दी, शिर्क से है बचाया
बुत-परस्ती में जो मुब्तला थे, उन को कलमा पढ़ाया
सदा इस्लाम की, ए 'आसिम ! गूँज उठी
हुई काफ़ूर कुफ़्र-ओ-शिर्क की बिद'अत
'अता-ए-मुस्तफ़ा ! मेरे ख़्वाजा पिया !
हसन, हुसैन से है आप को निस्बत
नबी की आल हो, 'अली के लाल हो
बयाँ हो किस ज़बाँ से आप की अज़मत
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