बे-ठिकाना हूँ अज़ल से, मुझे घर जाने दे
अपनी रहमत के समुंदर में उतर जाने दे
न मैं तख़्त मंगाँ, न मैं ताज मंगाँ
न मैं मंगदी हाँ मैनूँ ज़र मिल जाए
अपनी रहमत के समुंदर में उतर जाने दे
सू-ए-बतहा लिए जाती है हवा-ए-बतहा
बू-ए-दुनिया ! मुझे गुमराह न कर, जाने दे
बे-ठिकाना हूँ अज़ल से, मुझे घर जाने दे
अपनी रहमत के समुंदर में उतर जाने दे
तेरी सूरत की तरफ़ देख रहा हूँ, आक़ा !
पुतलियों को इसी मर्कज़ पे ठहर जाने दे
बे-ठिकाना हूँ अज़ल से, मुझे घर जाने दे
अपनी रहमत के समुंदर में उतर जाने दे
ख़्वाहिश-ए-ज़ात ! बहुत साथ दिया है तेरा
अब जिधर मेरे मुहम्मद हैं उधर जाने दे
बे-ठिकाना हूँ अज़ल से, मुझे घर जाने दे
अपनी रहमत के समुंदर में उतर जाने दे
ज़िंदगी ! गुम्बद-ए-ख़ज़रा ही तो मंज़िल है मेरी
मुझ को हरियालियों में ख़ाक-बसर जाने दे
बे-ठिकाना हूँ अज़ल से, मुझे घर जाने दे
अपनी रहमत के समुंदर में उतर जाने दे
मौत पर मेरी शहीदों को भी रश्क आएगा
अपने क़दमों से लिपट कर मुझे मर जाने दे
बे-ठिकाना हूँ अज़ल से, मुझे घर जाने दे
अपनी रहमत के समुंदर में उतर जाने दे
रोक, रिज़वाँ ! न मुज़फ़्फ़र को दर-ए-जन्नत पर
ये मुहम्मद का है मंज़ूर-ए-नज़र, जाने दे
बे-ठिकाना हूँ अज़ल से, मुझे घर जाने दे
अपनी रहमत के समुंदर में उतर जाने दे
अपनी रहमत के समुंदर में उतर जाने दे
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