ग़रीब आए हैं दर पर तेरे, ग़रीब-नवाज़ !
करो ग़रीब-नवाज़ी, मेरे ग़रीब-नवाज़ !
करो ग़रीब-नवाज़ी, मेरे ग़रीब-नवाज़ !
तुम्हारे दर की करामत ये बारहा देखी
ग़रीब आए हैं और हो गए ग़रीब-नवाज़
लगा के आस बड़ी दूर से मैं आया हूँ
मुसाफ़िरों पे करम कीजिए, ग़रीब-नवाज़ !
तुम्हारी ज़ात से मेरा बड़ा त'अल्लुक़ है
कि मैं ग़रीब बड़ा, तुम बड़े ग़रीब-नवाज़
न मुझ सा कोई गदा है, न तुम सा कोई करीम
न दर से उठूँगा बे कुछ लिए, ग़रीब-नवाज़ !
हुज़ूर अशरफ़-ए-सिमनाँ के नाम का सदक़ा
हमारी झोली को भर दीजिए, ग़रीब-नवाज़
ज़माने भर से मुझे कर दिया ग़नी, सय्यद !
मैं सदक़े जाऊँ तेरी जोग के, ग़रीब-नवाज़ !
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