इक रिंद है और मिदहत-ए-सुल्तान-ए-मदीना
हाँ कोई नज़र, रहमत-ए-सुल्तान-ए-मदीना
हाँ कोई नज़र, रहमत-ए-सुल्तान-ए-मदीना
दामान-ए-नज़र तंग-ओ-फ़रावानी-ए-जल्वा
ए तल'अत-ए-हक़ ! तल'अत-ए-सुल्तान-ए-मदीना
तू सुब्ह-ए-अज़ल, आईना-ए-हुस्न-ए-अज़ल भी
ए सल्ले 'अला सूरत-ए-सुल्तान-ए-मदीना
ए ख़ाक-ए-मदीना ! तेरी गलियों के तसद्दुक़
तू ख़ुल्द है, तू जन्नत-ए-सुल्तान-ए-मदीना
इक नंग-ए-ग़म-ए-'इश्क़ भी है मुंतज़िर-ए-दीद
सदक़े तेरे, ए सूरत-ए-सुल्तान-ए-मदीना !
ज़ाहिर में ग़रीब-उल-ग़ुरबा फिर भी ये 'आलम
शाहों से सिवा सतवत-ए-सुल्तान-ए-मदीना
इस तरह कि हर साँस हो मसरूफ़-ए-'इबादत
देखूँ मैं दर-ए-दौलत-ए-सुल्तान-ए-मदीना
कौनैन का ग़म, याद-ए-ख़ुदा, दर्द-ए-शफ़ा'अत
दौलत है यही दौलत-ए-सुल्तान-ए-मदीना
इस उम्मत-ए-'आसी से न मुँह फेर, ख़ुदाया !
नाज़ुक है बहुत ग़ैरत-ए-सुल्तान-ए-मदीना
ए जान-बल-ब आम्दा, हुशियार, ख़बरदार
वो सामने हैं हज़रत-ए-सुल्तान-ए-मदीना
कुछ और नहीं काम, जिगर ! मुझ को किसी से
काफ़ी है बस इक निस्बत-ए-सुल्तान-ए-मदीना
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