अफ़सोस बहुत दूर हूँ गुलज़ार-ए-नबी से - Hindi Lyrics 2022
अफ़सोस ! बहुत दूर हूँ गुलज़ार-ए-नबी से इस नात की ख़ुसुसियात में से है के इसे जो भी सुनता और पढता है दीवाना हो जाता है। उम्मीद है के ये हिंदी नात लिरिक आप को पसंद आये गी।
अफ़सोस ! बहुत दूर हूँ गुलज़ार-ए-नबी से
काश ! आए बुलावा मुझे दरबार-ए-नबी से
उल्फ़त है मुझे गेसू-ए-ख़मदार-ए-नबी से
अब्रू-ओ-पलक, आँख से, रुख़्सार-ए-नबी से
बूसैरी ! मुबारक हो तुम्हें बुर्द-ए-यमानी
सौग़ात मिली ख़ूब है दरबार-ए-नबी से
बीमार ! न मायूस हो, तू हुस्न-ए-यक़ीं रख
दम जा के करा ले किसी बीमार-ए-नबी से
ए ज़ाइर-ए-तयबा ! ये दु'आ कर मेरे हक़ में
मुझ को भी बुलावा मिले दरबार-ए-नबी से
दीवानों के आँसू नहीं थमते दम-ए-रुख़्सत
जब सू-ए-वतन जाते हैं दरबार-ए-नबी से
जल्वों से, ख़ुदाया ! मेरा सीना हो मदीना
आँखें भी हों ठंडी मेरी दीदार-ए-नबी से
मस्ताना मदीने में, ख़ुदा ! ऐसा बना दे
टकरा के मैं दम तोड़ दूँ दीवार-ए-नबी से
जब क़ब्र में आएँगे तो क़दमों में गिरूँगा
ख़ूब आँखें मलूँगा मैं तो पैज़ार-ए-नबी से
'अत्तार है ईमाँ की हिफ़ाज़त का सुवाली
ख़ाली नहीं जाएगा ये दरबार-ए-नबी से
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